दरख्त के पैमाने पे चिलमन-ए-हुस्न का फुरकत से शरमाना
दरख्त के पैमाने पे चिलमन-ए-हुस्न का फुरकत से शरमाना
ये लाइन समझ में आए तो मुझे जरूर बताना!
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काला न कहो मेरे महबूब को
काला न कहो मेरे महबूब को
खुदा तो तिल ही बना रहा था
प्याला लुढ़क गया!
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ताजमहल देखकर बोला शाहजहाँ का पोता
ताजमहल देखकर बोला शाहजहाँ का पोता
अपना भी होता बैंक बैलेंस
अगर दादा आशिक ना होता!
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एक गीत लिखा है मैंने आपकी सूरत देखकर
उस गीत को संगीत दिया मैंने आपकी मुस्कुराहट देखकर
पर उसे गाना भूल गया मैं आपकी आवाज को सुनकर!!
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मैं आपको चाँद कहता, पर उसमें भी दाग है
मैं आपको सूरज कहता, पर उसमें भी आग है
मैं आपको बंदर कहता, पर उसमें भी दिमाग है!!!
गुरुवार, 30 जुलाई 2009
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